ज्ञानार्थ एवं मुहूर्त
दिशाशूल ज्ञानार्थ चक्रम
सोम शनिचर पूरब ना चालू। मंगल बुध उत्तरदिसिकाल।।
रवि शुक्र जो पश्चिम जाय। हानि होय पथ सुख नहिं पाय।।
गुरौ दक्खिन करे पयाना, फिर नहीं समझो ताको आना।।
अर्थ: सोमवार एवं शनिवार को पूरब दिशा में तथा मंगल एवं बुधवार को उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिये। रविवार एवं शुक्रवार को पश्चिम दिशा में यात्रा करना सर्वदा हानिकारक है। गुरूवार के दिन तो दक्षिण दिशा में यात्रा करना अशुभ है। ये दिशाशुल कहलाते है।
नोट:दिशाशूल में यदि यात्रा करना आवयकता ही हो तो निम्नाकिंत वस्तु खाने से यात्रा शुभ होती है।
वार |
रवि |
सोम |
मंगल |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
वस्तु | घी | दूध | गुड़ | पुष्प | दही | घी | तिल |
यात्रा में शुभ मुहूर्त
शुभ तिथि-द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी पूर्णिमा। शुभ नक्षत्र-अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, घनिष्ठा, रेवती।
- यदि चन्द्रवास मेष, सिंह, धनु राशि के पूर्व में हो तो ’’धनलाभ’’
- यदि चन्द्रवास वृष, कन्या, मकर राशि के दक्षिण में हो तो ’’सुख सम्पत्ति’’
- यदि चन्द्रवास मिथुन, तुला, कुम्भ राशि के पश्चिम में हो तो ’’मरण तुल्य कष्ट’’
- यदि चन्द्रवास कर्क, वृश्चिक, मीन राशि के उत्तर में हो तो ’’धन हानि’’
अग्निवास
- वर्तमान तिथि में 1 जोड़ना पुन: जो वार उस दिन हो उसकी संख्या जोड़ना।
- रविवार की संख्या 1 है यही से सभी वारों की संख्या प्रारम्भ होगी।
- कुल योग में 4 का भाग देना, शून्य व तीन शेष रहे तो अग्नि का वास पृथ्वी में होता है,
- इसमें हवन करने पर कार्य की सिद्धि होती है।
चौघड़िया मुहूर्त
यदि शीघ्रता में कोई भी यात्रा का मुहूर्त अथवा शुभ कार्य का मुहूर्त नहीं बन रहा हो तो चौघड़िया मुहूर्त का उपयोग करना चाहिए।
मुहूर्त जानने की विधि
चौघड़िया मुहूर्त का समय दिन व रात के आठ-आठ हिस्से का होता है। जब दिन रात बराबर 12-12 घंटे के होते है। तब एक चौघड़िया मुहूर्त डेढ़ घटे का होता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक के मान को उस दिन का दिनमान तथा सूर्यास्त से सूर्योदय तक के मान को रात्रिमान कहा जाता है। आपको जिस दिन यात्रा करनी है। उस दिन का दिनमान पंचांग से लीजिये, उसमें क्रमश: जोड़ते हुए उस दिन के आठों चौघड़िया मूहुर्त ज्ञात कीजिये, अब आठों चौघड़िया में कौन सा मुहूर्त शुभ है। यह चक्र से ज्ञात कीजिये। रात्रि के चौघड़िया जानने के लिए भी रात्रिमान के आधार पर यही प्रक्रिया है।
दिन का चौघड़िया सूर्योदय से सूर्यास्त
वार | पहला | दूसरा | तीसरा | चौथा | पाँचवा | छठा | सातवाँ | आठवाँ |
रवि | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग |
सोम | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत |
मंगल | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग |
बुध् | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ |
गुरु | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ |
शुक्र | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर |
शनि | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल |
रात्रि का चौघड़िया सूर्यास्त से सूर्योदय तक
वार | पहला | दूसरा | तीसरा | चौथा | पाँचवा | छठा | सातवाँ | आठवाँ |
रवि | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ |
सोम | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर |
मंगल | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल |
बुध् | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग |
गुरु | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत |
शुक्र | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग |
शनि | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ |
भद्रा | करण |
1. पृथ्वी भद्रा – कुम्भ, मीन, कर्क, सिंह2. स्वर्ग भद्रा – मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक3. पाताल भद्रा – कन्या, धनु, तुला, मकर | 1. बव, 2. बालव, 3. कौलव, 4. तैतिल,5. गर, 6. वाणिज, 7. विष्टि, 8. शकुनी,9. चतुष्पद, 10. नाग, 11. किंस्तुघ्न |