पवित्र हरिद्वार तीर्थ
‘हरिद्वार’ का अर्थ है एक ऐसा स्थान, जहाँ पहुँचते ही एक अलग-सी अनुभूति हो। ऐसा लगे कि हम भगवान श्री हरि विष्णु के नगर में पहुँच गए हैं।
हरिद्वार के वातावरण में अनूठी पवित्रता और धार्मिकता नजर आती है। नगर में चारों ओर भगवान के भजन गूँजते रहते हैं। गंगा के निर्मल जल की कल-कल ध्वनि से मुग्ध कर देने वाला संगीत पैदा होता है, जो यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। हरिद्वार को भारत की धार्मिक राजधानी माना जाता है। यहाँ के घाटों पर साधु-संतों का डेरा लगा रहता है।
साल भर यहाँ श्रद्धालु आते रहते हैं। कुछ श्रद्धालु यहाँ पर गंगा स्नान के लिए आते हैं। कुछ यहाँ घूमने व दर्शनीय स्थलों को देखने आते हैं। कुछ यहाँ पर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका तर्पण कराने के लिए आते हैं।
हरिद्वार की एक और खास बात यहाँ के पंडितों का लेखा-जोखा है। हरिद्वार के पंडितों के पास आपके परिवार का पीढ़ी-दर-पीढ़ी का लेखा-जोखा रहता है। यह लेखा-जोखा हजारों वर्षों से वर्तमान पंडितों के पूर्वजों के द्वारा सँभालकर रखा गया है।
मुख्य आकर्षण :
हर की पोड़ी- हरिद्वार में माँ गंगा का पावन स्थान ‘हर की पोड़ी’ को कहा जाता है। यहाँ पर गंगा माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। रोज शाम को सूर्यास्त के समय गंगा माता की आरती होती है। उस समय यहाँ भक्तों का मेला-सा लग जाता है। इस आरती को देखने के लिए लाखों विदेशी पर्यटक हरिद्वार की तरफ खिंचे चले आते हैं।
यह मुख्य घाट है और पवित्र स्थान है जहां से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। लोग यहां डुबकी लगाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां पाप धुल जाते हैं। इस घाट पर जो पद-चिह्न बने हैं, माना जाता है कि वे भगवान विष्णु के हैं। प्रत्येक संध्या में यहां गंगा की आरती/नदी की पूजा की जाती है, इस दौरान छोटे-छोटे दीये पानी पर तैराए जाते हैं।
हरिद्वार में माँ गंगा एक सिरे से दूसरे सिरे तक बहती हैं, लेकिन जो पुण्य हर की पौड़ी में स्थित ‘ब्रह्मकुंड’ में स्नान से मिलता है, वह कहीं नहीं मिलता। माना जाता है कि अमृतमंथन के बाद अमृत की कुछ बूँदें यहाँ गिरी थीं, इसलिए इसे ब्रह्मकुंड कहा जाता है।
मंदिर- यह पावन नगरिया कई मंदिरों से भरी हुई है। हरिद्वार में हर की पौड़ी के सामने की पहाड़ी पर माता मनसा देवी का प्राचीन मंदिर है। वहीं दूसरी ओर पहाड़ी पर माता चंडीदेवी का प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर काफी संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।
मनसा देवी मंदिर :
यह मंदिर शहर के नजदीक पहाड़ी पर स्थित है। यदि आपमें पैदल चलने की हिम्मत है तो आपको लगभग 1.5 कि.मी. चलना पड़ेगा और शर्तिया ही आपको एक सुंदर दृश्य दिखाई देगा। पूजा करने के लिए यहां दुकानों पर पूजा की सामग्री मिल जाती है, इसमें नारियल, गेंदे के फूल और सुगंधित अगरबत्तियां शामिल होती हैं।
यहाँ पर ट्रस्ट के द्वारा यात्रियों की सुविधा के लिए उड़नखटोला (रोप वे) बनाया गया है, जिससे दो जगहों पर यात्री कुछ समय में ही माता के दर्शन कर लौट सकते हैं। हरिद्वार में हजारों मंदिर हैं। यहाँ की हर गली हर नुक्कड़ में एक नया मंदिर मिलेगा। इन्हें देखने का एक ही नियम है बस आप पैदल घूमते जाएँ-दर्शन करते जाएँ।
बड़ा बाजार :
यह शहर का तड़क-भड़क वाला बाजार है। यहां फेरीवाले विभिन्न प्रकार के व्यंजन, आयुर्वेदिक दवाएं, पीतल का सामान, कांच की चूड़ियां, शालें, लकड़ी से बनी विभिन्न वस्तुएं और बांस से बनी टोकरियां बेचते नज़र आते हैं।
परमेश्वर महादेव मंदिर :
यह मंदिर हरिद्वार से लगभग 4 कि.मी. दूर है, यहां पारे से बना एक पवित्र शिवलिंग है।
पवन धाम मंदिर :
शहर से लगभग 2 कि.मी. दूर पवन धाम मंदिर है। उत्कृष्ट आईनों और शीशे पर किए गए कार्य के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर में व्यापक रूप से अलंकृत मूर्तियां हैं।
लाल माता मंदिर :
यह मंदिर जम्मू-कश्मीर में स्थित वैष्णों देवी मंदिर का प्रतिरूप है। यहां एक नकली पहाड़ी और बर्फ से जमाया हुआ शिवलिंग है जो अमरनाथ के शिवलिंग का प्रतिरूप है।
यहां अनेक दर्शनीय मंदिर हैं जिनमें दक्ष महादेव मंदिर, भारत माता मंदिर और चंदा देवी प्रमुख हैं। जय राम आश्रम, आनंदमयी मां आश्रम, सप्त ऋषि आश्रम और परमार्थ आश्रम अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
बाबा रामदेव का आश्रम- हरिद्वार के पास कनखल नामक एक स्थान है, जहाँ पर विश्व प्रसिद्ध योगाचार्य बाबा रामदेव’ का आश्रम है। यह आश्रम प्रकृति की गोद में बेहद सुरम्य स्थान पर बना है। यहाँ हर साल कई लोग अपने मर्ज भगाने और योग सीखने आते हैं।
ऋषिकेश- हरिद्वार से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश है। यहाँ पर ही विश्व प्रसिद्ध राम झूला एवं लक्ष्मण झूला नामक पुल हैं, जो गंगा नदी पर बने हैं। इनकी सुंदरता देखते ही बनती है। यहाँ से पहाड़ों के बीच से बहती हुई गंगा नदी का दर्शन बड़ा मनोरम प्रतीत होता है। यहाँ पर भी कई प्राचीन मंदिर हैं। पहाड़ों से घिरा होने के कारण यह नगर अत्यंत ही सुंदर लगता है।
यहाँ से ही देहरादून, मसूरी, उत्तरकाशी, चमोली टिहरी धारायु, चम्बा जोशीमठ एवं उत्तर भारत के पर्यटन एवं मनोरम स्थल के लिए रास्ता जाता है। उत्तर भारत की चारधाम यात्रा भी इसी रस्ते से होकर जाती है।
हरिद्वार नगर, हरिद्वार जनपद का मुख्यालय है। यह नगर हिन्दुओं का एक अति प्राचीन तीर्थ एवं धार्मिक स्थल है। संस्कत भाषा तथा हिन्दुओं के अन्य धार्मिक कलापों का भी प्रमुख केन्द्र है। वर्तमान में इस नगर में कुछ उधोगों का विकास हुआ है। यह नगर मेरठ से 141 किमी0 सहारनपुर से 81 किमी0 लखनउ से 494 किमी0 तथा देहरादून से 52 किमी0 पर स्थित है।
नगर की आबादी मुख्यतः चार भागों में विभाजित हैं
1- हरिद्वार 2- ज्वालापुर 3- कनखल 4- भारत हैवी इलैक्ट्रिकल टाउनशिप।
हरिद्वार नगर पश्चिम उत्तर प्रदेश में जडी बूटियों एवं जंगल से प्राप्त लकडी की एक प्रमुख मण्डी है। यह नगर राजकीय राजमार्ग संख्या 45 दिल्ली से प्रारम्भ होकर मेरठ, मुजपफरनगर, रूडकी, हरिद्वार होती हुई भारत तिब्बत सीमा पर स्थित नीतीपास नामक स्थान पर जाकर समाप्त होती है।
हरिद्वार की जलवायु उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र के लगभग समान है जो अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद है। मई तथा जून के महीनों में भीषण गर्मी पडती है। नगर का तापमान 1.3 से 41.1 डिग्री सेंटीग्रेट के मध्य रहता है। नगर में पानी की सतह की औसत गहराई 25×35 फीट है।
कब जाएँ- हरिद्वार जाने के लिए मई माह से अक्टूबर-नवंबर माह तक का समय काफी अच्छा है। इस समय यहाँ का मौसम बेहद सुहावना होता है। वैसे भारी बारिश को छोड़कर यहाँ साल भर जाया जा सकता है।
कैसे जाएँ-
हरिद्वार देश के सभी बड़े शहरों से सड़क-रेल-वायु तीनों मार्गों से जुड़ा हुआ है। आप चाहें तो चार-धाम टूरिस्ट पैकेज भी ले सकते हैं।
कहाँ ठहरे-
इस देवस्थल में अच्छे होटलों से लेकर कई धर्मशालाएँ हैं। सभी अखाड़ों के आश्रम हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार इनमें से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं।
बजट-
हरिद्वार और आसपास के दर्शनीय स्थानों पर घूमने के लिए दस हजार से लेकर जितनी आपकी क्षमता हो, उतना बजट बनाया जा सकता है। यहाँ कई सस्ती धर्मशालाएँ हैं, जहाँ बुजुर्ग और श्रद्धालु लोग महीने भर भी ठहर सकते हैं। ऐसे में बजट पहले से बना लें तो बेहतर होगा।